राजस्थान में अनेक ऐसी जातियां हैं जो गा-बजाकर ही अपना जीवन-यापन कर रही हैं। इन पेशेवर लोक गायकों और वादकों को सामाजिक मान्यता प्राप्त है। राज्य में लोक संगीत की पेशेवर जातियों का संक्षिप्त विवरण निम्नांकित है-
कलावन्त
कलावन्त का तात्पर्य अपने हुनर में निष्णात होना है। संगीत सम्राट तानसेन से रिश्ता जोड़ने वाले कलावन्तों में गौड़ ब्राह्मण और चौहान राजपूत मुख्य हैं जो मुसलमान बनाए जाने से पूर्व मन्दिरों में कीर्तन किया करते थे। कलावन्तों में आज भी कुछ कलाकार अपने नाम के आगे सेन तथा कुछ खां लगाते हैं।
ढाढी
राज्य के जैसलमेर और बाड़मेर में अधिक पाए जाने वाले ढाढी कलाकारों को अब मांगणियार के नाम से अधिक जाना जाता है। पश्चिमी राजस्थान के ये कलाकार जहां एक ओर नमाज अदा करते हैं, वहीं देवी-देवताओं को भी उसी आस्था से मानते हैं। ये कलाकार कमायचा, खड़ताल, सुरणाई, आदि लोकवाद्य बजाते हैं।
मिरासी
मारवाड़ क्षेत्र में इन कलाकारों की बहुलता है। ये अधिकतर सुन्नी सम्प्रदाय के मानने वाले हैं। भाटों की तरह ही ये भी वंशावली का बखान करते हैं। सारंगी इनका मुख्य वाद्य है। अलवर क्षेत्र के मिरासी मेवाती भी कहलाते हैं।